(१)
तिनके-तिनके से गौरैया
अपना नीड़ बसाती है
संध्या होने से पहले ही
दाना लेकर आती है
नीड़ में बच्चे शोर मचाते
भूख लगी माँ दाना दो
खिला-पिलाकर बच्चों के संग
सपनों में खो जाती है
(२)
रोज सवेरे सूरज आता पूरब में
किरणों की झांझर झनकाता पूरब में
बहती लाली आसमान के परदे पर
समय नहीं यह लेटे रहना गद्दे पर !
(३)गिन्कू खिलौने घर का राजा
करता है मनमानी
लूसी बनती भोली-भाली
पर है बड़ी सयानी
दद्दे देखभाल करता है
लगता पंडित ग्यानी
गिन्कू,लूसी के कहने पर
कहता रोज कहानी !
Wednesday, September 3, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत बहुत बधाई आप को इस नये बांलग की, आप का यह बांलग भी आप की कविताओ की तरह से खुब महके.
ReplyDeleteधन्यवाद
रश्मिजी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और हल्की फुल्की कवितायें है आपकी। ऐसे शब्द जो आसानी से दिल में बस जायें।
आपका स्वागत है। आपनी बहुत बहुत सुन्दर शुरुआत की।
॥दस्तक॥
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteबढ़िया है.
ReplyDeleteहिन्दी चिट्ठाजगत में आपके इस ब्लॉग का भी स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
बहुत ही बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत खूब. अच्छी पंक्तियाँ है .
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं
Bahut hi achi, saral aur dil ko chu lene wali kavitaein. Dhanyawad.
ReplyDeleteachhi rachna isliye nahi kahta ki isaki shilpa bahut achhi hai...ya phir isame bhavnaon ka koi ubal dikhaya gaya hai? ye achhi isaliye hai ki aap aapne bachon nanhe munho ke label me jake likha hai??
ReplyDeletebachchon ke liye likhi saari rachnaayen bahut khoobsurat hain.
ReplyDeletebadhai
bahut achchi prastuti.
ReplyDelete