Wednesday, December 17, 2008

बारिश की बूंदें.......

सुनो,सुनो......
मैं हूँ बारिश की बूंदें
बादलों में छुपकर बैठी
और लहराई शहर-शहर,
गाँव-गाँव और डगर-डगर,
सागर,नदी,पर्वत-पर्वत..........
जहाँ भी चाहा बरस गई,
मिट्टी की मादक गंध बन गई
छत से टप-टप का साज बजाया
कवि ह्रदय को गान दिया !
कहीं विरह का गीत बनी,
कहीं सुख की शीतलता
और कहीं प्रलय बन बैठी.........
मैं ही सुख हूँ,
मैं ही दुःख हूँ,
मैं हूँ बारिश की बूंदें.............................

Monday, December 15, 2008

देश की खातिर.....

सुबह हुई
उठ जाओ अब तुम
नए दिन का आरम्भ करो
गुरु,गोविन्द को शीश झुकाओ
मात-पिता का लो आशीष
याद करो फिर देश को अपने
करो प्रण अपने मन में------
'जो भी करें
बस देश की खातिर
देश का ऊँचा नाम करें
नहीं है कोई धर्म अलग
हर धर्म का सम्मान करें....'