तुम्हारे पास लकड़ी की नाव नहीं ,
निराशा कैसी?
कागज़ के पन्ने तो हैं !
नाव बनाओ और पूरी दुनिया की सैर करो..........
हर खोज,हर आविष्कार तुम्हारे भीतर है ,
अन्धकार को दूर करने का चिराग भी तुम्हारे भीतर है
तुम डरते हो कागज़ की नाव डूब जायेगी , पर
अपने आत्मविश्वास की पतवार से उसे चलाओ तो
हर लहरें तुम्हारा साथ देंगी.........
Monday, December 22, 2008
Wednesday, December 17, 2008
बारिश की बूंदें.......
सुनो,सुनो......
मैं हूँ बारिश की बूंदें
बादलों में छुपकर बैठी
और लहराई शहर-शहर,
गाँव-गाँव और डगर-डगर,
सागर,नदी,पर्वत-पर्वत..........
जहाँ भी चाहा बरस गई,
मिट्टी की मादक गंध बन गई
छत से टप-टप का साज बजाया
कवि ह्रदय को गान दिया !
कहीं विरह का गीत बनी,
कहीं सुख की शीतलता
और कहीं प्रलय बन बैठी.........
मैं ही सुख हूँ,
मैं ही दुःख हूँ,
मैं हूँ बारिश की बूंदें.............................
मैं हूँ बारिश की बूंदें
बादलों में छुपकर बैठी
और लहराई शहर-शहर,
गाँव-गाँव और डगर-डगर,
सागर,नदी,पर्वत-पर्वत..........
जहाँ भी चाहा बरस गई,
मिट्टी की मादक गंध बन गई
छत से टप-टप का साज बजाया
कवि ह्रदय को गान दिया !
कहीं विरह का गीत बनी,
कहीं सुख की शीतलता
और कहीं प्रलय बन बैठी.........
मैं ही सुख हूँ,
मैं ही दुःख हूँ,
मैं हूँ बारिश की बूंदें.............................
Monday, December 15, 2008
देश की खातिर.....
सुबह हुई
उठ जाओ अब तुम
नए दिन का आरम्भ करो
गुरु,गोविन्द को शीश झुकाओ
मात-पिता का लो आशीष
याद करो फिर देश को अपने
करो प्रण अपने मन में------
'जो भी करें
बस देश की खातिर
देश का ऊँचा नाम करें
नहीं है कोई धर्म अलग
हर धर्म का सम्मान करें....'
उठ जाओ अब तुम
नए दिन का आरम्भ करो
गुरु,गोविन्द को शीश झुकाओ
मात-पिता का लो आशीष
याद करो फिर देश को अपने
करो प्रण अपने मन में------
'जो भी करें
बस देश की खातिर
देश का ऊँचा नाम करें
नहीं है कोई धर्म अलग
हर धर्म का सम्मान करें....'
Wednesday, September 3, 2008
नन्हे-मुन्नों के लिए.....(अम्मा की कलम से)
(१)
तिनके-तिनके से गौरैया
अपना नीड़ बसाती है
संध्या होने से पहले ही
दाना लेकर आती है
नीड़ में बच्चे शोर मचाते
भूख लगी माँ दाना दो
खिला-पिलाकर बच्चों के संग
सपनों में खो जाती है
(२)
रोज सवेरे सूरज आता पूरब में
किरणों की झांझर झनकाता पूरब में
बहती लाली आसमान के परदे पर
समय नहीं यह लेटे रहना गद्दे पर !
(३)गिन्कू खिलौने घर का राजा
करता है मनमानी
लूसी बनती भोली-भाली
पर है बड़ी सयानी
दद्दे देखभाल करता है
लगता पंडित ग्यानी
गिन्कू,लूसी के कहने पर
कहता रोज कहानी !
तिनके-तिनके से गौरैया
अपना नीड़ बसाती है
संध्या होने से पहले ही
दाना लेकर आती है
नीड़ में बच्चे शोर मचाते
भूख लगी माँ दाना दो
खिला-पिलाकर बच्चों के संग
सपनों में खो जाती है
(२)
रोज सवेरे सूरज आता पूरब में
किरणों की झांझर झनकाता पूरब में
बहती लाली आसमान के परदे पर
समय नहीं यह लेटे रहना गद्दे पर !
(३)गिन्कू खिलौने घर का राजा
करता है मनमानी
लूसी बनती भोली-भाली
पर है बड़ी सयानी
दद्दे देखभाल करता है
लगता पंडित ग्यानी
गिन्कू,लूसी के कहने पर
कहता रोज कहानी !
Monday, September 1, 2008
आओ....
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