Wednesday, September 3, 2008

नन्हे-मुन्नों के लिए.....(अम्मा की कलम से)

(१)
तिनके-तिनके से गौरैया
अपना नीड़ बसाती है
संध्या होने से पहले ही
दाना लेकर आती है
नीड़ में बच्चे शोर मचाते
भूख लगी माँ दाना दो
खिला-पिलाकर बच्चों के संग
सपनों में खो जाती है

(२)
रोज सवेरे सूरज आता पूरब में
किरणों की झांझर झनकाता पूरब में
बहती लाली आसमान के परदे पर
समय नहीं यह लेटे रहना गद्दे पर !

(३)गिन्कू खिलौने घर का राजा
करता है मनमानी
लूसी बनती भोली-भाली
पर है बड़ी सयानी
दद्दे देखभाल करता है
लगता पंडित ग्यानी
गिन्कू,लूसी के कहने पर
कहता रोज कहानी !

10 comments:

  1. बहुत बहुत बधाई आप को इस नये बांलग की, आप का यह बांलग भी आप की कविताओ की तरह से खुब महके.
    धन्यवाद

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  2. रश्मिजी
    बहुत सुन्दर और हल्की फुल्की कवितायें है आपकी। ऐसे शब्द जो आसानी से दिल में बस जायें।
    आपका स्वागत है। आपनी बहुत बहुत सुन्दर शुरुआत की।
    ॥दस्तक॥

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  4. बढ़िया है.

    हिन्दी चिट्ठाजगत में आपके इस ब्लॉग का भी स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

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  5. बहुत ही बेहतरीन।

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  6. बहुत खूब. अच्छी पंक्तियाँ है .
    आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं

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  7. Bahut hi achi, saral aur dil ko chu lene wali kavitaein. Dhanyawad.

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  8. achhi rachna isliye nahi kahta ki isaki shilpa bahut achhi hai...ya phir isame bhavnaon ka koi ubal dikhaya gaya hai? ye achhi isaliye hai ki aap aapne bachon nanhe munho ke label me jake likha hai??

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  9. bachchon ke liye likhi saari rachnaayen bahut khoobsurat hain.

    badhai

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