हमारे घर का,
विशेषकर हमारी माँ का
सबसे प्रिय खेल था
हमें कल्पना देना ...
हमने उन कल्पनाओं के संग
आँखमिचौली खेली
पूछा -
मछली मछली कितना पानी ?
क्षितिज तक जाने का
अथक प्रयास किया
उसके आगे
ध्यानावस्थित हुए
सत्य और झूठ
दोनों से काल्पनिक रिश्ता जोड़ा
तब कहीं जाकर
"जीवन की एक मुट्ठी धूप मिली"
और यही हकीकत है ...